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गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

सर्द मौसम में झरी राग रागनियों की मिठास “तानसेन समारोह-2019” (प्रात:कालीन सभा 19 दिसम्बर)

ग्वालियर | 19-दिसम्बर-2019
 



 

 

 

   
 

   प्यार की पुलक, सौंदर्य की मादकता हेमंत के सर्द मौसम की गुदगुदाहट जब सुरों से झरे तो कौन होगा जो इस रासभीने अहसास से अछूता रहना चाहेगा।तानसेन समारोह में आज की सुबह कुछ ऐसा ही ताना बाना लेकर आई।समारोह में आज  गुरुवार की प्रातःकालीन सभा में सुर साधकों ने गायन और वादन से खूब रंग भरे।
    सभा का आगाज़ ग्वालियर के भारतीय  संगीत महाविद्यालय के विद्यार्थियों  के ध्रुपद गायन से हुआ। राग जौनपुरी और ताल चौताल में तानसेन रचित बंदिश के बोल थे " रघुवर की छबि सुंदर"। संगीत गुरु संजय देवले द्वारा संयोजित इस बंदिश को विद्यार्थियों ने बड़े ही मनोयोग से गाया। प्रस्तुति में पखावज पर संजय आफले ने संगत की।
    सभा की पहली प्रस्तुति के रूप में ग्वालियर के जयवंत गायकवाड़ का पखावज वादन हुआ। राजा मानसिंह संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में कार्यरत जयवंत जी ने पखावज वादन की तालीम पंडित तोताराम शर्मा से प्राप्त की है। उन्होंने चौताल में अपने वादन की प्रस्तुति दी।आपने विविध लयकारियों के अलावा परनों की भी प्रस्तुति दी। आपके साथ हारमोनियम पर विवेक जैन और सारंगी पर अब्दुल हमीद ने संगत की।
    सभा की अगली प्रस्तुति मुम्बई की शुश्री  सोनल शिवकुमार का गायन हुआ।मधुर और सुरीली आवाज की धनी सोनल जी ने राग जौनपुरी में अपना गायन पेश किया। सुंदर आलापचारी से शुरू करके उन्होंने इस राग में दो बंदिशें पेश कीं।तीनताल में विलम्बित बंदिश के बोल थे- "बाजे झनन"  तीन ताल में ही द्रुत बंदिश के बोल थे- "पायल बाजन लागे"।दोनों ही बंदिशों को गाने में आपने अपने कौशल का बखूबी परिचय दिया। राग की बढ़त करने में उन्होंने खूब कमाल दिखाया। तानों की अदायगी भी बेहतरीन रही।आपने गायन का समापन कबीरदास के भजन से किया। सोनालजी के साथ तबले पर रामेंद्र सोलंकी और हारमोनियम पर विवेक बंसोड़ ने मीठी संगत की।
    सभा के तीसरे कलाकार थे उज्जैन से आये वरिष्ठ गायक पंडित सुधाकर देवले। पंडित जितेंद्र अभिषेकी जी की परंपरा के गायक सुधाकर देवले की गायकी में आगरा ग्वालियर और जयपुर घराने के रंग देखने को मिलते हैं।उन्होंने अपने गायन के लिए दोपहर के राग शुद्ध सारंग का चयन किया। सुंदर आलापचारी से शुरू करते हुए उन्होंने इस राग में दो बंदिशें पेश की। एकताल में निबद्ध विलम्बित बंदिश के बोल थे-" ऐ बनावन आया रे" जबकि तीनताल में द्रुत बंदिश के बोल थे-"  बेगि दरसवा देहो"। देवले जी ने दोनों ही बंदिशें पूरी तल्लीनता से गाईं। सुर लगाने के अंदाज़ से ही राग का स्वरूप खड़ा हो गया। राग के विस्तार में सुर खिलते चले गए। फिर लय को हल्का सा बढ़ाते हुए उन्होंने बहलाबों की प्रस्तुति दी और तानों की सिलसिलेवार अदायगी ने रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। आकार की तानें सपाट तानें ,उपज अंग की तानें भी उनके गायन का खास हिस्सा रहीं। चतुरंग से गायन को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने पंडित रामाश्रय झा की दुर्लभ बंदिश पेश की- "गाइये सजन गुनी जन बीच" । कवित्त सरगम तराने और पखावज या तबले के बोलो के साथ गायी जाने वाली चतुरंग को कलाकार कम ही गाते हैं, लेकिन देवले जी ने इसे गाकर खूब रंग भरे। अगली पेशकश में आपने राग बढ़हँस सारंग की झपताल में निबद्ध बंदिश -" मन मेरो भरमायो " पेश की। इस बंदिश को भी आपने पूरे कौशल से गाया।आपने गायन का समापन नानक के भजन - मन की रही मनमाहीं से किया। आपके साथ तबले पर अनिल मोघे और हारमोनियम पर सुरेश राय ने संगत की। जबकि गायन के साथ तानपूरे पर संजय देवले व यश देवले ने साथ दिया।
    सभा का समापन ताल सप्तक से हुआ। छह तबलों के साथ हुई ये प्रस्तुति लाजबाव रही। भोपाल के प्रख्यात तबला नवाज सलीम अल्लाहवाले के निर्देशन में सजी इस प्रस्तुति में नईम अल्लाहवाले, मोईन अल्लाहवाले, शमी अल्लाहवाले सौलत अल्लाहवाले सोएब अल्लाहवाले तबले पर थे जबकि सारंगी पर ज़ाकिर हुसैन ने नगमा दिया। तीन ताल में हुई इस प्रस्तुति में सभी वादकों ने कई रंग भरे। पेशकार से शुरू करके इन कलाकारों ने उठान, कायदे, रेले टुकड़े फरमाइशी परनें ,चक्करदार परनें और गतें पेश की। इसके साथ ही दिल्ली अजराड़ा फर्रुखाबाद,बनारस पंजाब और लखनऊ की खास बंदिशें भी पेश की। कुल मिलाकर ये प्रस्तुति लाजबाब रही।




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